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|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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}}
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नौकरी की शर्त पूरी की नहीं
चापलूसी, जी-हुज़ूरी की नहीं
बन न पाए साहबों के खास हम
क्योंकि बँगलों की मजूरी की नहीं
यूँ मुलाकातें हुईं उनसे बहुत
बात वो जो थी ज़रूरी,की नहीं
धाम साईंनाथ के जाते रहे
उम्र भर लेकिन सबूरी की नहीं
थी जहाँ श्रद्धा, समर्पित भी हुए
साधना आधी-अधूरी की नहीं
</poem>
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|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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नौकरी की शर्त पूरी की नहीं
चापलूसी, जी-हुज़ूरी की नहीं
बन न पाए साहबों के खास हम
क्योंकि बँगलों की मजूरी की नहीं
यूँ मुलाकातें हुईं उनसे बहुत
बात वो जो थी ज़रूरी,की नहीं
धाम साईंनाथ के जाते रहे
उम्र भर लेकिन सबूरी की नहीं
थी जहाँ श्रद्धा, समर्पित भी हुए
साधना आधी-अधूरी की नहीं
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