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{{KKRachna
|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
|संग्रह=
}}
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दुनिया जगर-मगर है कि मज़दूर दिवस है
चर्चा इधर-उधर है कि मज़दूर दिवस है
मालिक तो फ़ायदे की क़वायद में लगे हैं
उन पर नहीं असर है कि मज़दूर दिवस है
ऐलान तो हुआ था कि घर इनको मिलेंगे
अब भी अगर-मगर है कि मज़दूर दिवस है
साधन नहीं है कोई भी, भरने हैं कई पेट
इक टोकरी है, सर है कि मज़दूर दिवस है
हाथों में फावड़े हैं ‘यती’ रोज़ की तरह
उनको कहाँ ख़बर है कि मज़दूर दिवस है
</poem>
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|रचनाकार = ओमप्रकाश यती
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दुनिया जगर-मगर है कि मज़दूर दिवस है
चर्चा इधर-उधर है कि मज़दूर दिवस है
मालिक तो फ़ायदे की क़वायद में लगे हैं
उन पर नहीं असर है कि मज़दूर दिवस है
ऐलान तो हुआ था कि घर इनको मिलेंगे
अब भी अगर-मगर है कि मज़दूर दिवस है
साधन नहीं है कोई भी, भरने हैं कई पेट
इक टोकरी है, सर है कि मज़दूर दिवस है
हाथों में फावड़े हैं ‘यती’ रोज़ की तरह
उनको कहाँ ख़बर है कि मज़दूर दिवस है
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