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14:37, 25 सितम्बर 2007 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सूरदास
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राग देवगंधार
हरि किलकत जसुमति की कनियाँ ।<br>
मुख मैं तीनि लोक दिखराए, चकित भई नँद-रनियाँ ॥<br>
घर-घर हाथ दिवापति डोलति, बाँधति गरैं बघनियाँ ।<br>
सूर स्याम की अद्भुत लीला नहिं जानत मुनिजनियाँ ॥<br><br>
भावार्थ :-- हरि श्रीयशोदाजीकी गोदमें किलकारी ले रहे हैं । अपने (खुले) मुखमें उन्होंने तीनों लोक दिखला दिये, जिससे श्रीनन्दरानी विस्मित हो गयीं । (कोई जादू-टोना न हो, इस शंका से) घर-घर जाकर श्यामके मस्तकपर आशीर्वादके हाथ रखवातीघूमती हैं और गलेमें छोटी बघनखिया आदि बाँधती हैं । सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दरकी लीला ही अद्भुत है, उसे तो मुनिजन भी नहीं समझ पाते । (श्रीयशोदाजी नहींसमझतीं इसमें आश्चर्य क्या ।)