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Kavita Kosh से
पंख कटे पंछी निकले हैं
भरने आज उडानें
कागज कk के यानों पर चढकर
नील गगन को पाने
बैसाखी पर टिकी हुयी हैं
जिनकी खुद औकातें
बाँट रहे दोनो दोनों हाथों से
भर भर कर सौगातें
राह दिखाने घर से निकले
दुनिया भर को भोजन देने
का ले रहे बयाना
टूटी पतवारो पतवारों से निकले
नौका पार लगाने