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शब्द को संबल बनाकर नील नभ सा मान दो।
नत नित करूं पूजन तुम्हारा
प्राण में यह भावना दो,
तिमिर दंशित मन गगन को
भाव मंडित गीत हों, नव
शिल्प का पारस परस कर,
अर्थबल से युक्त हों हो हर
शब्द अपने को सरस कर,
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