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निदा फ़ाज़ली / परिचय

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==संपादन==
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फ़िल्म प्रोड्यूसर-निर्देशक-लेखक [[कमाल अमरोही]] उन दिनों फ़िल्म रज़िया सुल्ताना ([[हेमा मालिनी]], [[धर्मेन्द्र]] अभिनीत) बना रहे थे जिसके गीत [[जाँनिसार अख़्तर]] लिख रहे थे जिनका अकस्मात निधन हो गया। [[जाँनिसार अख़्तर]] ग्वालियर से ही थे और निदा के लेखन के बारे में जानकारी रखते थे जो उन्होंने शत-प्रतिशत शुद्ध उर्दू बोलने वाले [[कमाल अमरोही]] को बताया हुआ था। तब [[कमाल अमरोही]] ने उनसे संपर्क किया और उन्हें फ़िल्म के वो शेष रहे दो गाने लिखने को कहा जो कि उन्होंने लिखे। इस प्रकार उन्होंने फ़िल्मी गीत लेखन प्रारम्भ किया और उसके बाद इन्होने कई हिन्दी फिल्मों के लिये गाने लिखे।<br>
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उनकी पुस्तक '''मुलाक़ातें''' में उन्होंने उस समय के कई स्थापित लेखकों के बारे मे लिखा और भारतीय लेखन के '''दरबारी-करण''' को उजागर किया जिसमें लोग धनवान और राजनीतिक अधिकारयुक्त लोगों से अपने संपर्कों के आधार पर पुरस्कार और सम्मान पाते हैं। इसका बहुत विरोध हुआ और ऐसे कई स्थापित लेखकों ने निदा का बहिष्कार कर दिया और ऐसे सम्मेलनों में सम्मिलित होने से मना कर दिया जिसमें निदा को बुलाया जा रहा हो।<br>
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जब वह पाकिस्तान गए तो एक मुशायरे के बाद कट्टरपंथी मुल्लाओं ने उनका घेराव कर लिया और उनके लिखे शेर -<br>
<br>'''घर से मस्जिद है बड़ी दूर, चलो ये कर लें।'''-<br><br>'''किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए॥'''-<br><br>पर अपना विरोध प्रकट करते हुए उनसे पूछा कि क्या निदा किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा ने उत्तर दिया कि मैं केवल इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह अपने हाथों से बनाता है।
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उनकी एक ही बेटी है जिसका नाम '''तहरीर''' है।
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