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सूर स्याम ब्रज-जन-मोहन बरष-गाँठि कौ डोरा खोल ॥ <br>
भावार्थ :-- आज प्रातःकाल अँधेरा रहते ही चहल-पहल मच गयी है । गोकुलमें आनन्दमनाया गोकुल में आनन्द मनाया जा रहा है, व्रजराजके मुहल्लेमें व्रजराज के मुहल्ले में मंगल-ध्वनि हो रही है, श्रीनन्दजी श्रीनन्द जी फूले-फूले फिर रहे हैं, उन्हें बड़ा आनन्द हो रहा है, वे पुष्प और ताम्बूल मँगवा रहे हैं, श्रीयशोदाजी श्रीयशोदा जी शरीर और मन दोनोंसे दोनों से प्रफुल्लित हुई घूम रही है, फिर रहे हैं उन्हें बड़ा आनन्द हो रहा है, वे पुष्प और ताम्बूल मँगवा रहे हैं;श्री यशोदाजी शरीर और मन दोनोंसे प्रफुल्लित हुई घूमरही हैं, अपने अमूल्य धन कन्हाईको कन्हाई को उन्होंने उबटन लगाकर स्नान कराया और अब कमल वस्त्र से उसके छोटे से शरीर, दोनों छोटे-छोटे हाथ तथा छोटे-छोटे चरणोंको चरणों को पोंछ रही हैं । कन्हाईके गलेमें मणियोंकी कन्हाई के गले में मणियों की माला शोभा दे रही है, अंगोंमें अंगों में आभूषण तथा अँगुलियों में अँगूठियाँ हैं । सिरपरमाताने सिर पर माता ने चौकोर टोपी पहनायी है, नजर न लगने के लिये कज्जल का बिन्दु भालपर दियाहैभाल पर दिया है, नेत्रोंमें नेत्रों में काजल लगाया है तथा झगुलिया (कुर्ता) पहिनायी है ।श्याम मातासे । श्याम माता से झगड़ा कर रहा है (स्नान, वस्त्रादि धारणका धारण का विरोध करता है), लड़खड़ाता है (भूमिमें भूमि में लेट जाने तथा माताके माता के हाथ से छूटने का प्रयत्न करता है) और कलबल (अस्फुट) स्वरमें स्वर में बोलता है । माता उसके दोनों कपोल पकड़कर मुखका चुम्बन करती हैं । आज तेरी वर्षगाँठ है !' यह कहकर उल्लास प्रकट करती हैं। सूरदासजी कहते हैं कि सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर व्रजजनोंके चित्तको व्रज जनों के चित्त को मोहित करनवाले करने वाले हैं । आजउनकी वर्षगाँठके सूत्रकी आज उन की वर्षगाँठ के सूत्र की गन्थि खोली गयी है ।