सूरदास स्वामी सुख-सागर, जसुमति-प्रीति बढ़ावत ॥<br><br>
(श्यामसुन्दरकाश्यामसुन्दर का) बालविनोद हृदयको हृदय को अत्यन्त प्रिय लगता है । अपने मुखका प्रतिबिम्बपकड़ने प्रतिबिम्ब पकड़ने के लिये वे बड़े उल्लास से घुटनोंके घुटनों के बल दौड़ते हैं । इस प्रकार निखिल ब्रह्माण्डनायक होनेका ब्रह्माण्ड नायक होने का माहात्म्य अपनी शिशुतामें शिशुता में वे छिपाये हुए हैं । शब्दों को एकत्र करके कुछ कहना चाहते हैं, किंतु स्पष्ट बोलना आता नहीं है । वे कमललोचन मक्खन माँगना चाहते हैं, इससे बार-बार संकेत करके समझा रहे हैं । सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं कि मेरे स्वामी सुखके समुद्र हैं, वे माता यशोदाके यशोदा के वात्सल्य-प्रेमको प्रेम को बढ़ा रहे हैं ।