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Kavita Kosh से
घात लगाए कुर्सी बैठे
टट्टू भाड़े वाले
अपनी बातो बातों में वादों के
सब्ज़बाग हैं पाले
सुरसा-सी बढ़ती आबादी
गाफ़िल लाल तिकोन
ढूँढ़ रही रह हैं आँख हवा में
एक यही प्रश्नोत्तर
इतनी बड़ी हवेली आख़िर
जंग जीतने चले समय की
लेकर थोथे नारे
घिरी चिरैया सोन
घुटने टेके खड़े नियन्ता
खड़े नियामक मौन
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