भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
घात लगाए कुर्सी बैठे
टट्टू भाड़े वाले
अपनी बातो बातों में वादों के
सब्ज़बाग हैं पाले
सुरसा-सी बढ़ती आबादी
गाफ़िल लाल तिकोन
ढूँढ़ रही रह हैं आँख हवा में
एक यही प्रश्नोत्तर
इतनी बड़ी हवेली आख़िर
जंग जीतने चले समय की
लेकर थोथे नारे
घबरायी नज़रों से ताके
घिरी चिरैया सोन
घुटने टेके खड़े नियन्ता
खड़े नियामक मौन
</poem>
66
edits