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सूर प्रभू की अद्भुत लीला जिन जानी तिन जानी ॥<br><br>
भावार्थ :-- हरि मक्खन खाते हुए हँसते जाते थे , किलकारी मारते थे, (इसी समय जल से भरा) निर्मल घड़ा पकड़कर उन्होंने देखा । उसमें अपने प्रतिबिम्ब को देखकर यह समझकर कि यह कोई दूसरा छिपा (माखन चुराने या भागने की) बाट देखता है, क्रोधित हो गये । मन में अमर्ष करते हुए, कुछ बोलते हुए नन्दबाबा के पास आये (और बोले) `बाबा! उस घड़े में किसी का लड़का (छिपा) है। उसने मेरा मक्खन खा लिया है ।' व्रजराज उन्हें गोद में लेकर गले से लगाते, उनके मुखको मुख को पोंछते, उसका चुम्बन करते उस स्थानपर स्थान पर आये । घड़े में अपने बाबा को) उस लड़के को हृदय से लगाये(गोद में लिये) श्याम ने देखा,इससे और अधिक क्रुद्ध हुए तत्काल श्रीयशोदा जी के पास जाकर बोले -`मैया! मैं तेरा पुत्र हूँ । नन्दबाबा ने तो आज कोई दूसरा पुत्र बना लिया, मेरा कुछ भी आदर नहीं किया ।' श्रीयशोदा जी ने मन में समझ लिया कि यह बालक का विनोद है, अतः (श्याम को) उसी स्थान पर ले आयीं और घड़े को दोनों हाथों से पकड़कर हिलाने लगीं; इससे मोहन को अपना प्रतिबिम्ब नहीं मिला । इससे गोपाललाल आनन्द और प्रेमवश हँस पड़े, श्रीनन्दरानी भी इससे आनन्दित हुई । सूरदास के स्वामी की ये अद्भुत लीलाएँ जो जानते हैं, वे ही जानते हैं (अर्थात् कोई-कोई परम भक्त ही इसे जान पाते हैं )।