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चलत लाल पैजनि के चाइ / सूरदास

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तनक लाल नवनीत लिए कर सूरज बलि-बलि जाइ ॥<br><br>
भावार्थ :-- लाल (श्यामसुन्दर) पैजनीके चावसे पैजनी के चाव से (नूपुर-ध्वनि से आनन्दित होकर) चलतेहैं चलते हैं । बार-बार उन्हें नया-नया आनन्द (उल्लास) होता है, बार-बार वे अपने चरणोंको चरणों को देखते हैं । छोटा-सा मुख है, छोटा-सा कुर्ता पहिने हैं और कटिमें कटि में करधनी सजी है । (गलेमेंगले में) यन्त्रयुक्त हार तथा बघनख शोभित है । (भुजाओंमेंभुजाओं में) रत्नजटित पहुँची (अंगद) हैं, ललाटपर ललाट पर तिलक लगा है तथा काला डिठौना है, माता उनकी बलैयाँ ले रही हैं, लाल (श्याम) अपने हाथपर हाथ पर थोड़ा-सा माखन लिये हैं, (उनकी इस छटा पर) सूरदास बार-बार बलिहारी जाता है ।