भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए घर में बिखरी हुई चीज़...' के साथ नया पन्ना बनाया
अपना गम लेके कहीं और न जाया जाए

घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाए


जिन चिरागों को हवाओं का कोई खौफ़ नहीं

उन चिरागों को हवाओं से बचाया जाए


बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं

किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाए


ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में

और कुछ दिन अभी औरों को सताया जाए


घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए