भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
आज जबकि ज़िंदगी बिखरी हुई है
आज जबकि धड़कनें उखड़ी हुई हैं
आज जबकि रोशनी सिमटी हुई है
आज जबकि चाँदनी सहमी हुई है
आज जबकि आँख में जाले पड़े हैं
आज जबकि जीभ में छाले पड़े हैं
आज जबकि साँस में शीशे चुभे हैं
आज जबकि होंठ भी सूजे हुए हैं
आज जबकि एक भी दूजे हुए हैं
आज जबकि रूह भी हैरान-सी है
आज जबकि तू भी परेशान-सी है
आज जबकि देह में तकलीफ-सी है
कुछ समस्याएँ मुँह बाए खड़ी हैं
देश के हालात कुछ ‘अनबन’ हुए हैं
दोस्तों की शक्ल में दुश्मन हुए हैं
हर किसी को चाहिए कि अपने भीतर
नींद में धुँधले हुए ख़्वाबों से उठकर
एक ज़रा-सा अपने दिल के अंदर झाँके
और अपने ‘भगत’ को आवाज़ दे ले!
<Poem>
Mover, Reupload, Uploader
301
edits