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पगडंडियाँ थीं टहलने के लिए
नीमों-बबूलों की टहनियाँ थीं दातुन के लिए
गाने के लिए थेइ तने थे इतने लोकगीत की कि उसे
कई ज़िन्दगियों तक के लिए पर्याप्त थे
पहले से ही था अन्न-धान से भरा खलिहान
भाइयों के चेहरों पर पिता की मृत्यु के मौक़े पर
भोज के लिए कर्ज़ लेने का भाव
उनसे परवरिश न हो पाने के तनाव
घर के चूल्हे और परिंडे पर निगाह डालने पर उसे लगा
वह मृत्युभोज का कार्यक्रम बीच में छोड़
शहर आ गया वापस
वह दोस्त के प्सास पास गया
उसे दोस्त से उम्मीद थी
दोस्त देख नहीं पाया कि वह आया है
उसे लगा कहीं कोई फ़र्क नहीं पड़ता
मैं जाऊँ तो , नहीं जाऊँ तो
मुझे देख कर किसी के मन में कुछ नहीं जगता
उसे लगा मैं घर में घर वालों का