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माँ की याद / वीरेन डंगवाल

1 byte added, 11:29, 11 अप्रैल 2012
|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
}}
     <poem>
क्या देह बनाती है माँओं को ?
 
क्या समय ? या प्रतीक्षा ? या वह खुरदरी राख
 
जिससे हम बीन निकालते हैं अस्थियाँ ?
 
या यह कि हम मनुष्य हैं और एक
 
:::सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा है हमारी
 
जिसमें माँएँ सबसे ऊपर खड़ी की जाती रही हैं
 
बर्फ़ीली चोटी पर,
 
और सबसे आगे
 
फ़ायरिंग स्क्वैड के सामने ।
</poem>
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