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|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
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उस छोटे से शहर में एक सुबह
 
या शाम या किसी छुट्टी के दिन
 
मैंने देखा पेड़ों की जड़ें
 
मज़बूती से धरती को पकड़े हुए हैं
 
हवा थी जिसके चलने में अब भी एक रहस्य बचा था
 
सुनसान सड़क पर
 
अचानक कोई प्रकट हो सकता था
 
आ सकती थी किसी दोस्त की आवाज़
 
कुछ ही देर बाद
 
इस छोटे से शहर में आया
 
शोर कालिख पसीने और लालच का बड़ा शहर
 
(1994 में रचित)
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