भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
}}
  <poem>
आख़िरकार मैंने देखा पत्नी कितनी यातना सहती है. बच्चे बावले से
 
घूमते हैं. सगे-संबंधी मुझसे बात करना बेकार समझते हैं. पिता ने सोचा
 
अब मैं शायद कभी उन्हें चिट्ठी नहीं लिखूंगा.
 
मुझे क्या था इस सबका पता
 
मैं लिखे चला जाता था कविता.
 
(1988)
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits