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सूर स्याम लए जननि खिलावति, हरष सहित मन मोदा ॥<br><br>
भावार्थ :-- (माताने माता ने मोहन से कहा-) अपने बड़े भाई बलरामको बलराम को बुला लो । मेरे सामने ही कोई खेल खेलो और अपनी मैया को भी आनन्द दो । श्यामसुन्दर! मैं तुम्हारे नेत्र बंद करूँ, (दूसरे सब) बालक छिप जायँ ।' इससे प्रसन्न होकर आँखमिचौनी आँख मिचौनी खेलने के लिये श्यामसुन्दरने श्यामसुन्दर ने सब सखाओं को बुलाया । बलरामजी बलराम जी ने पूछा -`आँख बंद कौन करेगा ?' श्यामसुन्दर बोले - `मैया यशोदा (मेरे) नेत्र बंद करेंगी ।' सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं, प्रसन्नता के साथ श्यामसुन्दर को साथ लेकर माता खेला रही हैं । उनका चित्त आनन्दितहो आनन्दित हो रहा है ।