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|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग्रह= मेरे सात जनम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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[[Category:हाइकु]]
पोंछो ये पलकें
मोतियों भरे हैं ये
सागर सिन्धु छलके ।
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लुटाओ नहीं
जैसे नील गगन
नहीं है छोर ।
-0-<\/poem>