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शिवदीन की आस भरि भरी है, कबहूँ नहीं व्याप सके भव घ्यारी |
मेरी ही बेर क्यूँ देर करो हो, सुनो हनुमान ये अर्ज़ हमारी ||८||
दोहा
सकल कमाना पूर्ण हो अष्टक पढ़े जो कोय |
निश्चय पावे भक्ति फल ज्ञान दीप उर जोय ||
लंगड़े तेरे नाम से काज चढ़े सब पेश |
भक्त राज हनुमान को करि है याद हमेश ||
राम कृष्ण हनुमान को अर्पण ये पद आठ |
सज्जन जन सब ही करे प्रेम प्यार से पाठ ||
प्रेम भाव उर भावना शुद्ध हृदय शिवदीन |
पाठ करे शुभ फल मिले ताप मिटावे तीन ||
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