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|रचनाकार=मनोज भावुक
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<poem>
 
हमरा सँगे अजीब करामात हो गइल
सूरज खड़ा बा सामने आ रात हो गइल
खुद जिन्दगी भी बाटे सवालात हो गइल
'''परिचय हमार पूछ रहल बा घरे के लोग''''''अइसन हमार हाय रे, औकात हो गइल'''
जमकल रहित करेज में कहिया ले ई भला