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<poem>
अपना ही देशहै
हमारे पास नहीं है कोई पटकथा
हम खाली हाथ ही नहीं
बलुआई ढलानों पर काँटों के जंजाल के बीच
बौंखती वह अनाथ लड़की
जनुम <ref>काँटों का जाल</ref> हटा-हटाकर क़ब्र देखना चाह रही है
कहीं उसकी माँ तो दफ़्न नहीं है वहाँ
वह बार-बार कोशिश कर रही है हड़सारी <ref>क़ब्र पर रखा पत्थर</ref> हटाने की
जिस के नीचे पिता की लाश ही नहीं
उसकी अपनी ज़िन्दगी दबी हुई है
गोलियों की तड़तड़ाहट नहीं
न पर्वतों पर खाऊड़ी <ref>एक जंगली घास</ref> हैन ही नदी किनारे बड़ोवा<ref>जंगली घास का नाम</ref>
अगली बरसात में
फूस का छत्रा बन जाएँगी हमारी झोपड़ियाँ
अब तो बन्द कीजिए गोलियाँ बरसाना
</poem>
 
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