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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=* [[फूटती हैं कोपलें / अभिज्ञात]]}}{{KKCatKavita}}<poem>हम जो कि एक साथपूँछ और मूँछ दोनों की चिंता * [[रेह में एक साथ व्यग्र हैंकल्ले / अभिज्ञात]]बचाते * [[कविताएँ दाँत नहीं हैं अपना घर।/ अभिज्ञात]]जिस पर हमसारी उम्रपतीले की तरह चढ़ते हैं। एक अदहन हमारे अन्दर खौलता रहता है निरंतर।<* [[क्यों लगते हो अच्छे केदारनाथ सिंह? /poem>अभिज्ञात]]