भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
सदाए-बाँगे-जरस=घंटियों की आवाज़ की धुन; नज़ाद=वंश
यह क़िता अप्रतिम एकांकी-नातककार नाटककार भुवनेश्वर की याद को समर्पित है ।
'कारवाँ' भुवनेश्वर के एकांकी-संग्रह का शीर्षक है ।
Anonymous user