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{{KKRachna
|रचनाकार= शिवदीन राम जोशी
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क्या कैसे हो विनती, ना जानू भगवान,
शिवदीन दीन के हृदय में, कर दो प्रेम प्रकाश |
राम गुण गायरे ||
बडे़-बड़े पापियों को, त्यारे तुम दीना नाथ,
बारी ये हमारी प्रभु, भूल हूं न जाइये।
शिवदीन दीन तेरा दास, मेरे उर प्रकाश करो,
अर्जुन को दियो ज्ञान, मोकूं समझाइये।
बडी-बडी नदियां है, बडे-बडे पहार खडे,
बडे-बडे खड्डे खुदे, वामें गिर जाउं मैं।
कहता शिवदीन राम, राम नाम लेवूं कैसे,
कैसे नाथ भक्ति बिन, तेरे द्वार आउं मैं।
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