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|रचनाकार=सुन्दरचन्द ठाकुर
|संग्रह=एक दुनिया है असंख्य / सुन्दरचन्द ठाकुर
}}
<Poem>
मेरे पिता एक फ़ौजी थे
मगर वे मरे एक शराबी की मौत

उन्होंने कभी मेरे सिर पर हाथ नहीं रखा
नहीं चूमा मेरा माथा
बचपन में गणित पढ़ाते हुए
उन्होंने ग़ुस्से में मेरी गर्दन ज़रूर दबाई

उनकी मृत्यु के बारे में बताते हैं
उस रात वे बैरक में अकेले थे
उन्होंने छक कर शराब पी थी
पीकर सो गए
नींद में ही फटा उनका मस्तिष्क

पिता की तरह मैं भी एक फ़ौजी बना
और एक फ़ौजी का होना चाहिये कड़ा दिल
मां मेरे कंधे पर सिर रख कर रोई
बहन के आँसू थमने को नहीं आए
मैं नहीं रोया

इस बात को जैसे एक जन्म गुज़रा
अब तक तो पिता का सैनिक रिकॉर्ड भी नष्ट किया जा चुका होगा
मगर मैं कभी-कभी नींद में अब भी छटपटाता हूं
मरने से पहले उन्होंने पानी तो नहीं मांगा

मुझे क्यों लगता है कि उन्हें बचाया जा सकता था।
</poem>
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