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16:38, 1 जून 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शिवदीन राम जोशी
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<poem>
हे दयालू ! ले शरण में, मोहे क्यो बिसार्यो ।
जुठे बेर सबरी के, पाय काज सार्यो ।। हे दयालू ...
द्रोपदी की रखि लाज, कोरव दल गयो भाज।
पांडवों की कर सहाय, अरजुन को उबार्यो ।।हे...
रक्षक हो भक्तन का, किया संग संतन का ।
तारन हेतु मुझको, तुम संत रूप धार्यो ।। हे...
नरसी का भरा भात, विप्रन के श्रीकृष्ण नाथ ।
दुष्टन को गर्व गार, रावण को मार्यो ।।हे दयालू ..
शिवदीन हाथ जोडे, दुनियां से मुखः मोडे ।
ध्रुव को ध्रुव लोक अमर, भक्त जानि तार्यो ।। हे...
<poem>