भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कितना मैंने रोका ख़ुद को कितनी देर न चाहा
पर उसके अनुरोध ने, कोई शेष न ओड़ी छोड़ी राह
हाथों ने मेरे झोंक दिया मेरी ख़ुशी को आग में
प्रेमपत्र वह लील लिया सुर्ख़ लपटों के राग ने