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Kavita Kosh से
१- ढोती है रात
मनुज की पीडाएं
भोर की आस |<br>
२- मुखौटे लगा
खोने को हैं बेताब
चैटिंग – यार |<br>
३- हैं अनजान
अडोस-पड़ोस से
सर्फिंग -प्यार |<br>
४- ऊषा मुस्काई
भौंरे गुनगुनाए
ताजगी आई |<br>
५- आँगन धूप
भागती फिर रही
छत-मुडेर |<br>
६- आसमां झुक
धरा से कहता ये
तुझ से ही मैं |<br>
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