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/* तुलसीदास कृत मुख्य ग्रंथ */
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|रचनाकार=तुलसीदास
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== शीर्षक ==
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'''बचपन
इधर भगवान शंकरजी की प्रेरणा से रामशैल पर रहनेवाले श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्द जी ने इस बालक को ढूँढ़ निकाला और उसका नाम रामबोला रखा। उसे वे अयोध्या ( उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक जिला है।) ले गये और वहाँ संवत् १५६१ माघ शुक्ला पञ्चमी शुक्रवारको उसका यज्ञोपवीत-संस्कार कराया। बिना सिखाये ही बालक रामबोला ने गायत्री-मन्त्र का उच्चारण किया, जिसे देखकर सब लोग चकित हो गये। इसके बाद नरहरि स्वामी ने वैष्णवों के पाँच संस्कार करके रामबोला को राममन्त्र की दीक्षा दी और अयोध्याही में रहकर उन्हें विद्याध्ययन कराने लगे। बालक रामबोला की बुद्धी बड़ी प्रखर थी। एक बार गुरुमुख से जो सुन लेते थे, उन्हे वह कंठस्थ हो जाता था। वहाँ से कुछ दिन बाद गुरु-शिष्य दोनों सूकरक्षेत्र (सोरों) पहुंचे। वहाँ श्रीनरहरी जी ने तुलसीदास को रामचरित सुनाया। कुछ दिन बाद वह काशी चले आये। काशी में शेषसनातन जी के पास रहकर तुलसीदास ने पन्द्रह वर्ष तक वेद-वेदाङ्ग का अध्ययन किया। इधर उनकी लोकवासना कुछ जाग्रत् हो उठी और अपने विद्यागुरु से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि को लौट आये। वहाँ आकर उन्होंने देखा कि उनका परिवार सब नष्ट हो चुका है। उन्होंने विधिपूर्वक अपने पिता आदि का श्राद्ध किया और वहीं रहकर लोगों को भगवान् राम की कथा सुनाने लगे।
==सन्यास==
संवत् १५८३ ज्येष्ठ शुक्ला १३ गुरुवारको गुरुवार को भारद्वाज गोत्र की एक सुन्दरी कन्याके कन्या के साथ उनका विवाह हुआ और वे सुखपूर्वक अपनी नवविवाहिता वधूके वधू के साथ रहने लगे। एक बार उनकी स्त्री भाईके भाई के साथ अपने मायके चली गयी। पीछे-पीछे तुलसीदासजी भी वहाँ जा पहुँचे। उनकी पत्नीने पत्नी ने इसपर उन्हें बहुत धिक्कारा और कहा कि 'मेरे इस हाड़-मांसके शरीरमें जितनी तुमहारी आसक्ती तुम्हारी आसक्ति है, उससे आधी भी यदि भगवान्में भगवान् में होती तो तुम्हारा बेड़ा पार हो गया होता'।
==श्रीराम से भेंट==
==रामचरितमानस की रचना==
संवत् १६३१ का प्रारम्भ हुआ। उस दिन राम-नवमी के दिन प्रायः वैसा ही योग था जैसा त्रेता-युग में राम जन्म के दिन था। उस दिन प्रातःकाल श्रीतुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। दो वर्ष, सात महीने, छ्ब्बीस दिन में ग्रन्थ की समाप्ति हुई। संवत् १६३३ के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम-विवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।[[चित्र:Tulsidas2.jpg|right]]
इसके बाद भगवान की आज्ञा से तुलसीदास जी काशी चले आये। वहाँ उन्होंने भगवान् विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्रीरामचरितमानस सुनाया। रात को पुस्तक श्री विश्वनाथ जी के मन्दिर में रख दी गयी। सवेरे पट खोला गया तो उस पर लिखा हुआ पाया गया- ''''सत्यं शिवं सुन्दरम्'''' और नीचे भगवान् शंकर की सही थी। उस समय उपस्थित लोगों ने "'सत्यं शिवं सुन्दरम्'''' की आवाज भी कानों से सुनी।
==तुलसीदास कृत मुख्य ग्रंथ==
* '''[[दोहावलीरामचरितमानस / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[कवित्तरामायणकवितावली/ तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[कवितावलीविनयावली / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[रामचरितमानसविनय पत्रिका / तुलसीदास]]''' (सम्पूर्ण)* '''[[रामलला नहछूगीतावली / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[पार्वतीमंगलदोहावली / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[जानकी मंगलकवित्तरामायण / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[रामलला नहछू / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[बरवै रामायण/ तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[वैराग्य संदीपनी / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[रामाज्ञा/ तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[विनय पत्रिकादोहावली / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[वैराग्य संदीपनीपार्वती-मंगल / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[कृष्ण श्रीकृष्ण गीतावली/ तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)* '''[[जानकी -मंगल / तुलसीदास]]''' (लम्बी रचना)इसके अतिरिक्त [[रामसतसई / तुलसीदास |रामसतसई]], [[ संकटमोचन]], [[हनुमान बाहुक / तुलसीदास | हनुमान बाहुक]], [[रामनाम मणि]], [[कोष मञ्जूषा]], [[रामशलाका / तुलसीदास |रामशलाका]], * [[हनुमान चालीसा / तुलसीदास | हनुमान चालीसा]] आदि आपके ग्रंथ भी प्रसिद्ध हैं।