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सुमित्रानंदन पंत / परिचय

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==जन्म और परिवार==
सुमित्रानंदन पंत ([[मई 20]] [[, 1900]] - [[1977]]) [[हिंदी]] में [[छायावाद युग]] के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उनका जन्म अल्मोड़ा ज़िले के [[कौसानी]] नामक ग्राम में [[मई 20]] , 1900 को हुआ। जन्म के छह घंटे बाद ही माँ को क्रूर मृत्यु ने छीन लिया। शिशु को उसकी दादी ने पाला पोसा। शिशु का नाम रखा गया गुसाई दत्त।<ref>{{cite web |url= http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/utrn0002.htm|title= सुमित्रानंदन पंत |accessmonthday=[[20 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएम|publisher= उत्तरांचल|language=}}</ref>वे सात भाई बहनों में सबसे छोटे थे।
==कार्यक्षेत्र==
सुमित्रानंदन सात वर्ष की उम्र में ही जब वे चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे, कविता लिखने लग गए थे। सन् १९०७ से १९१८ के काल को स्वयं कवि ने अपने कवि-जीवन का प्रथम चरण माना है। इस काल की कविताएँ वीणा में संकलित हैं। सन् १९२२ में उच्छवास और १९२८ में पल्लव का प्रकाशन हुआ। सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियाँ हैं - ग्रंथि, गुंजन, ग्राम्या, युंगात, स्वर्ण-किरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, निदेबरा, सत्यकाम आदि। उनके जीवनकाल में उनकी २८ पुस्तकें प्रकाशित हुईं, जिनमें कविताएं, पद्य-नाटक और निबंध शामिल हैं। श्री सुमित्रानंदन पंत अपने विस्तृत वाङमय में एक विचारक, दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनकी सबसे कलात्मक कविताएं 'पल्लव' में संकलित हैं, जो 1918 से 1925 तक लिखी गई ३२ कविताओं का संग्रह है। <ref>{{cite web |url= http://www.culturopedia.com/Personalities/indianpersonality-sumitranandanpant.html|title= सुमित्रानंदन पंत |accessmonthday=[[20 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएमएल|publisher= कल्चरोपेडिया|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
==समालोचना==
उनका रचा हुआ संपूर्ण साहित्य 'सत्यम शिवम सुंदरम' के संपूर्ण आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा है। जहां प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र मिलते हैं वहीं दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं व कोमल भावनाओं के और अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशीलता के। उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं सो ओतप्रोत हैं। <ref>{{cite web |url= http://www.seasonsindia.com/art_culture/lit_hindi_sea.htm|title= हिंदी लिटरेचर|accessmonthday=[[20 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएम|publisher= सीज़ंस इंडिया|language=अंग्रेज़ी}}</ref>
==पुरस्कार व सम्मान==
हिंदी साहित्य की इस अनवरत सेवा के लिए उन्हें [[पद्मभूषण]]([[1961]]), [[ज्ञानपीठ]]([[1968]]) <ref>{{cite web |url= http://www.webindia123.com/government/award/jnanpith.htm|title= ज्ञानपीठ अवार्ड|accessmonthday=[[20 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएम|publisher=वेबइंडिया123.कॉम|language=अंग्रेज़ी}}</ref>, [[साहित्य अकादमी]] <ref>{{cite web |url= http://www.sahitya-akademi.org/sahitya-akademi/awa10306.htm#hindi|title= साहित्य एकेडमी अवार्ड एंड फ़ेलोशिप्स|accessmonthday=[[20 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएम|publisher=साहित्य अकादमी|language=अंग्रेज़ी}}</ref>, तथा [[सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार]]  जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया। सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौशानी में उनके पुराने घर को जिसमें वे बचपन में रहा करते थे, सुमित्रानंदन पंत वीथिका के नाम से एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। इसमें उनके व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं जैसे कपड़ों, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छायाचित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को प्रदर्शित किया गया है। <ref>{{cite web |url= http://www.medindia.net/taste_of_india/travel/kaushani.asp|title= कौशानी|accessmonthday=[[20 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एएसपी|publisher= मेड इन इंडिया|language=अंग्रेज़ी}}</ref>इसमें एक पुस्तकालय भी है, जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों का संग्रह है। <ref>{{cite web |url= http://www.india9.com/i9show/Sumitranandan-Pant-Vithika-27030.htm|title= सुमित्रानंदन पंत वीथिका |accessmonthday=[[20 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएम|publisher= इंडिया9.कॉम|language=अंग्रेज़ी}}</ref> <ref>{{cite web |url= http://craftrevivaltrust.org/detailsMuseums.asp?CountryName=India&MuseumCode=001851|title= सुमित्रानंदन पंत वीथिका |accessmonthday=[[20 जुलाई]]|accessyear=[[2007]]|format= एएसपी|publisher=क्राफ़्ट रिवाइवल ट्रस्ट|language=अंग्रेज़ी}}</ref> 
उनका देहांत [[1977]] में हुआ। आधी शताब्दी से भी अधिक लंबे उनके रचनाकर्म में आधुनिक हिंदी कविता का पूरा एक युग समाया हुआ है।