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'''दोहा''' '''''अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार।''''''''''बंदौं शिव-पद-युग-कमल अमल अतीव उदार।। 1।।''''''''''आर्तिहरण सुखकरण शुभ भक्ति-मुक्ति-दातार।''''''''''करौ अनुग्रह दीन लखि अपनो विरद विचार।। 2।।''''''''''पर्यो पतित भवकूप महँ सहज नरक आगार।''''''''''सहज सुहृद पावन-पतित, सहजहि लेहु उबार।। 3।।''''''''''पलक-पलक आशा भर्यो, रह्यो सुबाट निहार।''''''''''ढरौ तुरंत स्वभाववश, नेक न करौ अबार।। 4।।'''''
जय शिव शंकर औढरदानी।
सकल दुरित तत्काल नशावत।। 40 ।।
''''''दोहा'''''तिरछे अक्षर''''''''''बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।''''''''''गनौ न अघ, अघ जाति कछु, सब विधि करौ संभार।।1।।''''''''''तुम्हरो शील स्वाभव लखि, जो न शरण तव होय।''''''''''तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नही कुभाग्य जन कोय।।2।।''''''''''''दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।''''''''कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करौ पाप सब क्षार।।3।।'''''''''''''कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करौ पवित्र।'''''''राखौ पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र।।4।।'''''''तिरछे अक्षर''''