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Kavita Kosh से
''''''दोहा''''''''''
'''बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।'''''
'''''गनौ न अघ, अघ जाति कछु, सब विधि करौ संभार।।1।।'''''
'''''''दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।'''''
'''कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करौ पाप सब क्षार।।3।।'''''
'''''''''''कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करौ पवित्र।''''''''''राखौ पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र।।4।।'''''