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Kavita Kosh से
'''''दोहा'''''
'''''बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।'''''
'''''गनौ न अघ, अघ जाति कछु, सब विधि करौ संभार।।1।।'''''
'''''तुम्हरो शील स्वाभव लखि, जो न शरण तव होय।'''''
'''''तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नही कुभाग्य जन कोय।।2।।'''''
'''''राखौ पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र।।4।।'''''
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