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<Poem>
'''''दोहा'''''
'''''श्रीगुरू चरन सरोज रज निज मन मुकुरू सुधारि।''''''''''बरनउँ रघुबर बिमल जसु दो दायकु फल चारि।।'''''
'''''बुद्धिहीन तुन जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।''''''''''बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।'''''
'''|| चोपाई ||'''
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहूँ लोक उजागर।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
'''''दोहा'''''
'''''पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।''''''''''राम लषन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।'''''
'''।।इति।।'''
</Poem>
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