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मन मुझ को कहता है / अज्ञेय

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तुमन मन मुझ को कहता है- मैं हूँ दीपक यह तेरे हाथों का
मुझे आड़ तेरे हाथों की, छू पावे क्यों झोंका!
राजा हूँ, ऊँचा हूँ- मुझ-सा नहीं दूसरा कोई;
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