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Kavita Kosh से
विहग-स्वर सुन जाग देखा, उषा का आलोक छाया,
झिप गयी तब रूपकत्र्री रूपकतरी वासना की मधुर माया;
स्वप्न में छिन, सतत सुधि में, सुप्त-जागृत तुम्हें पाया-
चेतना अधजगी, पलकें लगीं तेरी याद में कँपने!