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हमारा देश / अज्ञेय
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07:28, 6 अगस्त 2012
इन्हीं के मर्म को अनजान
शहरों की ढँकी लोलुप
विषैली वासना का साँप डँसता
ह॥
है।
इन्हीं में लहरती अल्हड़
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