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आज मानव का सुनहला प्रात है,<br>आज विस्मृत का मृदुल आघात है;<br>आज अलसित और मादकता-भरे,<br>सुखद सपनों से शिथिल यह गात है;<br><br>
मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो,<br>आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो ।<br><br>
आज सौरभ में भरा उच्छ्वास है,<br>आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है;<br>आज शतदल पर मुदित सा झूलता,<br>कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है;<br><br>
लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो<br>आज मिल लो, मान करना छोड दो ।<br><br>
आज मधुकर कर रहा मधुपान है,<br>आज कलिका दे रही रसदान है;<br>आज बौरों पर विकल बौरी हुई,<br>कोकिला करती प्रणय का गान है;<br><br>
यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो<br>आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो ।<br><br>
आज नयनों में भरा उत्साह है,<br>आज उर में एक पुलकित चाह है;<br>आज श्चासों में उमड़कर बह रहा,<br>प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है;<br><br>
डूब जायें देवि, हम-तुम एक हो<br>आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो ।<br><br>