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Kavita Kosh से
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे ।
मै कहता हौं आँखन देखी ,तू कहता कागद की लेखी ।
मै कहता सुरझावन हारी ,तू राख्यो अरुझाई रे ॥
मै कहता तू जागत रहियो ,तू जाता है सोई रे ।
मै कहता निरमोही रहियो , तू जाता है मोहि रे ॥
जुगन-जुगन समझावत हारा,कहा न मानत कोई रे ।
तू तो रंगी फिरै बिहंगी , सब धन डारा खोई रे ॥
सतगुरू धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो ,तब ही वैसा होई रे ॥