{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=मृदुल कीर्ति}}{{KKPageNavigation|सारणी=आत्म-बोध / मृदुल कीर्ति|आगे=|पीछे=आत्म-बोध / भाग 6 / मृदुल कीर्ति}}<Poempoem>
सकल देव गण ज्योतित जिससे, ब्रह्म कदापि न ज्योतित उनसे.
परम ब्रह्म ज्योतित निज सत्ता, एकमेव पर ब्रह्म इयत्ता॥६१॥