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14:10, 27 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
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<poem>
मेरोई जिव जो मारतु मोहिं तौ,
प्यारे, कहा तुमसों कहनो है .
आँखिनहू यह बानि तजी ,
कुछ ऐसोइ भोगनि को लहनौ है .
आस तिहारियै ही ‘घनआनन्द’,
कैसे उदास भयो रहनौ है .
जानि के होत इते पै अजान जो ,
</poem>