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|रचनाकार=घनानंद
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मेरोई जिव जो मारतु मोहिं तौ,

प्यारे, कहा तुमसों कहनो है .

आँखिनहू यह बानि तजी ,

कुछ ऐसोइ भोगनि को लहनौ है .

आस तिहारियै ही ‘घनआनन्द’,

कैसे उदास भयो रहनौ है .

जानि के होत इते पै अजान जो ,

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