613 bytes added,
14:27, 27 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
}}
<poem>
जिय की बात जनाइये क्यों करि,
जान कहाय अजाननि आगौ .
तीरन मारि कै पीरन पावत ,
एक सो मानत रोइबो रागौ .
ऐसी बनी ‘घनआनन्द’ आनि जु,
आनन सूझत सो किन त्यागौ.
प्रान मरेंगे भरेंगे बिथा पै,
अमोही से काहू को मोह न लागौ .
</poem>