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पहिले अपनाय सुजान सनेह सों क्यों फिरि तेहिकै तोरियै जू.

निरधार अधार है झार मंझार दई, गहि बाँह न बोरिये जू .

‘घनआनन्द’ अपने चातक कों गुन बाँधिकै मोह न छोरियै जू .

रसप्याय कै ज्याय,बढाए कै प्यास,बिसास मैं यों बिस धोरियै जू .

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