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|रचनाकार=पद्माकर
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कूरम पै कोल कोल हू पै सेष कुंडली है ,
कुंडली पै फबी फैल सुफन हजार की .

कहै ‘पदमाकर’ त्यों फन पै फबी है भूमि ,
भूमि पै फबी है थिति रजत पहार की .

रजत पहार पर सम्भु सुरनायक हैं ,
सम्भु पर जोति जटाजूट है अपार की .

सम्भु जटाजूट पै चंद की छुटि है छटा
चंद की छटान पै छटा है गंगधार की . १.


बिधि के कमंडलु की सिद्धि है प्रसिद्धि यही,
हरि- पद- पंकज- प्रताप की लहर है .

कहै ‘पदमाकर’ गिरीस – सीस - मंडल के ,
मुंडन की माल ततकाल अघहर है .

भूपति भगीरथ के रथ को सुपुन्य पथ ,
जह्नु –जप-जोग-फल-फैल की फहर है.

छेम की लहर , गंगा रावरी लहर ,
कलिकाल को कहर, जम जाल को जहर है .२.


जमुपुर द्वारे , लगे तिनमें केवारे ,
कोऊ हैं न रखवारे ऐसे बन के उजार हैं .

कहै ‘पदमाकर’ तिहारे प्रन धारे,
तेऊ करि अधमारे सुरलोक को सिधारे हैं .

सुजन सुखारे करे पुन्य उजियारे ,
अति पतित कतारे भवसिंधु तें उतारे हैं .

काहू ने न तारे तिन्हैं गंगा तुम तारे ,
और जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं .३.

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