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|रचनाकार=पद्माकर
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तालन पै ताल पै तमालन पै मालन पै,
बृन्दावन बीथिन बहार बंसीबट पै .
कहै ‘पदमाकर’ अखंड रस मंडप पै ,
मंडित उमंडी महा कालिंदी के तट पै .
छिति पर छान पर छाजत छतान पर ,
ललित लतान पर लाडिली के लट पै .
आई भली छाई यह सरद-जुन्हाई ,जिहि ,
पाई छबि आजु ही कन्हाई के मुकुट पै .
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