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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=गीत-वृंदावन / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
<poem>

कौन कहता है, हम बिछुड़े हैं
तन से दूर भले हों राधे! मन से सदा जुड़े हैं

मन ही तो है वह वृन्दावन
जहाँ रास होता है क्षण-क्षण
नित्य प्रेम का फाग रहा मन
रंग-अबीर उड़े हैं

मैंने वहीँ मिलन है साधा
नहीं विरह की उसमें बाधा
दिखती पास खड़ी है राधा
जब भी नयन मुड़े हैं

कौन कहता है, हम बिछुड़े हैं
तन से दूर भले हों राधे! मन से सदा जुड़े हैं

<poem>
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