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15:41, 29 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=सब कुछ कृष्णार्पणम् / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
अब यह नव प्रभात मधुमय हो
मंगलमय, द्युतिमय, शोभामय, पावन अरुणोदय हो
अंध निशा का वक्ष चीर कर
फूटें ज्ञान रश्मियाँ भास्वर
युग युग की हिममय जड़ता पर
नव जीवन की जय हो
बरसे घर-घर प्रेम-सुधा-रस
निर्मल, उज्जवल हो जन-मानस
कोई कहीं न कातर, परवश,
साधनहीन सभय हो
अब यह नव प्रभात मधुमय हो
मंगलमय, द्युतिमय, शोभामय, पावन अरुणोदय हो
<poem>