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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कितने जीवन, कितनी बार / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
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हार नहीं मानूँगा
बाजी एक हार भी जाऊँ, और नयी ठानूँगा

गरजे व्योम, जलद घहरायें
कितनी भी हों क्रूर दिशायें
आयें, जो पवि-पाहन आयें
मैं सीना तानूँगा

यह संसार भले ही छूटे
आस्था की दृढ डोर न टूटे
रूप रचा कितने भी झूठे
तुझको पहचानूँगा

हार नहीं मानूँगा
बाजी एक हार भी जाऊँ, और नयी ठानूँगा
<poem>
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