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23:20, 29 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कितने जीवन, कितनी बार / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
हार नहीं मानूँगा
बाजी एक हार भी जाऊँ, और नयी ठानूँगा
गरजे व्योम, जलद घहरायें
कितनी भी हों क्रूर दिशायें
आयें, जो पवि-पाहन आयें
मैं सीना तानूँगा
यह संसार भले ही छूटे
आस्था की दृढ डोर न टूटे
रूप रचा कितने भी झूठे
तुझको पहचानूँगा
हार नहीं मानूँगा
बाजी एक हार भी जाऊँ, और नयी ठानूँगा
<poem>