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23:51, 29 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=कितने जीवन, कितनी बार / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
संध्या की वेला
श्रांत-वदन क्लांत-चरण और मैं अकेला
शून्य गगन शून्य धरा
लुप्त किरण ज्योति-करा
उर में अनुताप भरा
स्मृतियों का मेला
कहाँ सहृद बंधु सभी
संग थे जो अभी अभी !
कर का दर्पण तक भी
करता अवहेला
संध्या की वेला
श्रांत-वदन क्लांत-चरण और मैं अकेला
<poem>